‘मदर इंडिया’ के निर्देशक बनना चाहते थे एक्टर, भारत को दिलाई थी दुनिया में पहचान, बीमारी में सुनते थे लता मंगेशकर के गाने


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महबूब खान

महबूब खान को हमेशा ‘मदर इंडिया’ के निर्देशक के रूप में जाना जाएगा, यह पहली भारतीय फिल्म थी जिसे सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। ‘मदर इंडिया’ की बेहतरीन कामयाबी के बाद महबूब खान ने 1962 में ‘सन ऑफ इंडिया’ बनाई। फिल्म में महबूब ने बेटे साजिद खान, कमलजीत, सिमी गरेवाल को लीड रोल दिया। महबूब खान में सीखने का एक अलग ही जज्बा था और कुछ बेहतरीन कर दिखाने की ललक ने उन्हें हिंदी सिनेमा में मशहूर कर दिया। उनकी फिल्में आज भी लोगों के बीच चर्चा में रहती हैं। महबूब खान की फिल्मी विरासत इतनी बड़ी है कि वह सिर्फ एक फिल्म तक सीमित नहीं है। उनकी करीब 20 फिल्मों में से कई फिल्में कई वजहों से अलग हैं। सबसे खास हैं ‘औरत’ (1940), ‘अंदाज’ (1949), ‘आन’ (1952) और ‘अमर’ (1954)।

एक्टर बनने के लिए उठाया था बड़ा कदम

1906 में बड़ौदा के पास एक छोटे से गांव में पुलिस कांस्टेबल के घर जन्मे रमजान खान, महबूब खान सिनेमा की दुनिया से सिनेमाघरों के जरिए परिचित हुए। एक-दो फिल्म देखने के लिए आस-पास के शहरों में जाने के बाद, उन्हें बहुत कम उम्र में ही यकीन हो गया कि उन्हें हीरो बनना है। वे 16 साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई चले गए, लेकिन उनके पुलिसकर्मी पिता ने उन्हें खोज निकाला और वापस ले आए। उन्होंने उनकी पड़ोसी गांव की एक लड़की से जबरन शादी करवा दी। इस जोड़े के तीन बेटे हुए। हालांकि, महबूब खान ने 23 साल की उम्र में फिर से कोशिश की और जेब में सिर्फ 3 रुपये लेकर सपनों के शहर में पहुंच गए। शुरुआत में उन्होंने इंपीरियल फिल्म कंपनी के साथ एक एक्स्ट्रा एक्टर के तौर पर कई किरदार किए। 1931 में, निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने उन्हें भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ में लीड रोल निभाने का मौका दिया था। आज यही महबूब भारतीय सिनेमा के सबसे कामयाब डायरेक्टर कहे जाते हैं।

निर्देशक के रूप में हुए मशहूर

1935 में, उन्हें निर्देशक के रूप में अपना पहला बड़ा ब्रेक ‘अल हिलाल या अल्लाह’ का निर्णय के साथ मिला, जो रोमन-अरब टकराव के बारे में एक एक्शन से भरपूर फिल्म थी। यह सेसिल बी. डेमिल द्वारा बनाई गई ‘द साइन ऑफ द क्रॉस’ (1932) से प्रेरित थी। महबूब खान को बाद में अपने स्वयं के महाकाव्य बनाने के लिए ‘भारतीय सिनेमा का डेमिल’ कहा गया। उन्होंने पी.सी. बरुआ की ‘देवदास’, ‘जागीरदार’ (1937) और ‘एक ही रास्ता’ (1939) का निर्देशन किया। वह ऐसी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे जो सामाजिक मुद्दों पर होती है। अपने करियर के इस शुरुआती दौर में उन्होंने जो फिल्में बनाईं, उनमें से ‘औरत’ (1940) सबसे ज्यादा पसंद की गई। 1942 में, खान ने अपना खुद का महबूब प्रोडक्शंस स्थापित किया।

20 बार सुना लता दीदी का ये गाना

राज कपूर की फिल्म ‘चोरी-चोरी’ रिलीज हुई थी, जिसका गाना रसिक बलमा दिल क्यूं लगा बहुत फेमस हुआ था। इस गाने को लता मंगेशकर ने आवाज दी थी। उस समय डायरेक्टर महबूब खान बीमार थे। इस दौरान एक दिन महबूब को वो गाना सुनने का इतना मन हुआ कि उन्होंने लॉस एंजिलिस से सीधे लता दीदी को कॉल कर दिया। इसके बाद महबूब ने करीब 20 बार कॉल कर लता जी से ये गाना सुना था।

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